Wednesday, August 03, 2011

सरहद पे खड़ा सिपाही है.


सबके मन में खुशहाली है, जब कदम टिके हैं रेतों में,
निगेहबान सरहद पे वो तो, है हरियाली खेतों में.
तिरंगे की वो आन बचाता, आज़ाद हिंद का राही है,
धरती अपनी महफूज़ सदा जब, सरहद पे खड़ा सिपाही है.

बर्फ जमी है धरती पे, फिर भी वो कदम न हिलते हैं,
दुश्मन को जब मार गिराएं, तभी वो चेहरे खिलते हैं.
दोस्त तो पीछे छूट गया, दुश्मन तो अक्सर मिलते हैं,
घर की खुशियों मैं है दरार, वादों से जिनको सिलते हैं.
खून गिरे जो धरती पे, दुश्मन से डरता ना ही वो,
धरती अपनी महफूज़ सदा जब, सरहद पे खड़ा सिपाही है.

घर से ख़त जो मिले उसे, आँखें उसकी नम होती हैं,
निगेहबान फिर भी है वो, आँखें न उसकी सोती हैं.
होकर शहीद जब घर पहुँचे, सबकी आँखें फिर रोती हैं,
सदियाँ भी क्यों न हों उदास, जब वो संताने खोती हैं.
जो अपने लहू से वतन को सींचे, सरफ़रोश की वो गवाही है
धरती अपनी महफूज़ सदा जब, सरहद पे खड़ा सिपाही है

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