Wednesday, October 25, 2023

मन मेरा यूं करता है


मन मेरा यूं करता है,

मैं हवा से अब तो बात करूँ

तेरे संग दिन को रात करूँ

पथरीली मुश्किल राहों को 

तेरे कदमों से आघात करूँ।


मन मेरा यूं करता है

अस्सी- नब्बे तो कल की बात,

सौ से आगे रफ़्तार करूँ। 

उगता सूरज तुझको देखे,

उसपे मैं ये आभार करूँ।


मन मेरा यूं कहता है

गोंद में तेरी बैठे हुए,

तेरी धड़कन का आभास करूँ।

हाँ, है ताकत मेरी मुट्ठी में,

इस तथ्य का मैं एहसास करूँ।


मन मेरा यूं कहता है

कोई आगे निकल गया तो क्या,

पहले हम मंज़िल पा लेंगे।

बस कुछ कदमों की दूरी पे,

गीत विजय के गा लेंगे।

Tuesday, January 03, 2023

वो वीर सपूत थे भारत के

पश्चिम का ही परचम था।

उम्मीद का दीपक मद्धम था।

जो गीत रचे नए कल के

आज़ादी का ही सरगम था।


ख़ुदगर्ज़ नहीं वो रहा कभी,

जब आहुति देनी पड़ी।

अपने लहू से सींची धरती,

जिसपे है आज की नींव खड़ी।


थी जिनके रग में कुर्बानी,

थी जिन्होंने आज़ादी की ठानी,

वो वीर सपूत थे भारत के

वो वीर सपूत थे भारत के।


बातों का भी दौर चला।

सत्याग्रह कुछ दिन और चला।

उनकी आंखों में जाने कब से,

एक नयी सुबह का ख़्वाब पला।


हांथ सने बारूदों से,

सीने में भी चिंगारी थी।

बेड़ियों को तोड़ने की

उनकी कवायद जारी थी।

बात विचार जो विफल हुए,

संग्राम की अब तैयारी थी।


जो रहे सदा ही निगेहबान,

थामी रण की जिसने कमान,

वो वीर सपूत थे भारत के।

वो वीर सपूत थे भारत के।



जो रास न आया प्रेम भाव,

अब उन्होंने हुंकार भरी।

जा टकराए उस हुकूमत से,

जो रही सदा अहंकार भरी।

लाठी चली, गोली चली।

फांसी का डर भी बिसर गया।

कांप उठा अब दुश्मन भी,

सुनकर गरज ललकार भरी।


जिनसे है आबाद वतन,

जिनको है सबका नमन,

थे वीर सपूत वो भारत के।

हां वीर सपूत वो भारत के।



Sunday, January 01, 2023

साहस ने साथ नहीं छोड़ा

चाहे परिस्थितियां कितनी भी विकट क्यों न हों, चाहे मनुष्य ने कितनी ही बार पराजय का सामना क्यों न किया हो, साहस ही उसका साथ हमेशा देता है। 
पतझड़ तो बीता नहीं अभी। 
क्या बहार आएगी कभी ?
पथरीली राहें  जो मिली ,
सबने मुँह फेरा तभी। 

पैरों में कांटे चुभे हुए ,
मौसम ने भी अब मुँह मोड़ा। 
मैं थम गया कुछ क्षण तो क्या,
साहस  ने  साथ  नहीं छोड़ा। 

"चल उठ जा, अब देर न कर",
रणभूमि से आह्वान है। 
दे परिचय उस साहस का,
जिससे बैरी अंजान है। 

पर चूक गया मैं लक्ष्य से,
फिर हार ने मुझको तोड़ा । 
समय खड़ा विपरीत तो क्या,
साहस  ने  साथ  नहीं छोड़ा। 

हाँ, एक संदेह ने घर किया,
भय भी अब अट्ठहास करे। 
"विजय नहीं है अब संभव",
अंतःकरण एहसास करे। 

फिर एक पुकार मन में उठी,
 टूटे मन को जिसने जोड़ा।
सब छोड़ चले तो क्या हुआ,
साहस  ने  साथ  नहीं छोड़ा।